जब मां और पत्नी आपस में करें लड़ाई, तो दोनों में किसका साथ देना चाहिए?

जब मां और पत्नी आपस में करें लड़ाई, तो दोनों में किसका साथ देना चाहिए?

जब मां और पत्नी आपस में करें लड़ाई, तो दोनों में किसका साथ देना चाहिए?

मथुरा: प्रेमानंद महाराज के इंटरनेट पर कई सारे वीडियो वायरल होते रहते हैं. प्रेमानंद महाराज की कथा और प्रवचनों का एक वीडियो सोशल मेडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है. वायरल विडियो में महाराज जी ने बताया है कि अगर ऐसी परस्थिति हो जाए कि मां और पत्नी में किसी एक का चयन करना पड़े तो क्या करोगे? वायरल वीडियो में महाराज जी ने कहा कि जब हर रोज मां और पत्नी के बीच लड़ाई और घर में कलह रहती है, तो ऐसे वक़त में मां का साथ देना चाहिए या पत्नी का? यह जानना बहुत ज़रूरी है. एक मां जिसने आपको जन्म दिया और एक पत्नी जो आपके साथ रहने के लिए अपना सबकुछ छोड़कर आपके घर आयी है. ऐसे में दोनों में से किसका साथ देना सही है.

प्रेमानंद महाराज का जन्म कहां हुआ था? माता-पिता का क्या है नाम, किस गांव में बीता बचपन, जानें सबकुछ किसी एक का त्याग करना चाहिए या नहीं? इस पर महाराज जी कहते हैं कि ऐसे समय पर किसी भी स्थिति में पत्नी को अपना संग स्वीकार करके, मां की सेवा करनी चाहिए. त्याग दोनों का नहीं करना चाहिए. अगर पति, पत्नी और मां दोनों का त्याग कर दे, तो उसका धर्म नष्ट हो जाएगा. अगर माता पिता का त्याग करके पत्नी का अनुराग पूर्वक हम सेवन करते चल दिए तो हमारा कर्तव्य नष्ट हो जाएगा. पत्नी और मां के लिए हमारा क्या कर्तव्य है? अगर हम पत्नी को त्याग करके माता पिता का पक्ष लेते है तब भी हमारा कर्तव्य नष्ट हो जाएगा. अगर पत्नी को मां गाली देती है तो हम पत्नी को दुलार करके समझा लेंगे. लेकिन अगर मां को पत्नी गाली देती है तो ये गलत है, क्योंकि मां पुज्या होती है. महाराज जी ने आगे कहा कि एक पुरुष के लिए पत्नी अंग होती है और माता-पिता पूज्य होते हैं.

कैसे करें सही चयन? जब मां और पत्नी के बीच एक समस्या उत्पन्न होती है, तो सही चयन करना मुश्किल हो सकता है। प्रेमानंद महाराज के विचारों से साफ है कि दोनों को बराबर मानना चाहिए। उनके अनुसार, ऐसे समय में पत्नी को उसका संग देना चाहिए, जिससे उसका और उसके परिवार का सम्मान बना रहे। माता-पिता का प्यार और सम्मान करना भी उसी रूप में एक महत्वपूर्ण पहलू है।

समाप्ति इस विवाद का समाधान करने के लिए, हमें अपनी माता-पिता और पत्नी दोनों का सम्मान करना चाहिए। उनकी भावनाओं का सम्मान करना हमारा धार्मिक कर्तव्य है। इस प्रकार, हम समाज में सुधार ला सकते हैं और एक सदैव सुखी जीवन जी सकते हैं।

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